झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने कमजोर और विकलांग लोगों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन क्या ये योजनाएं सही मायनों में उनके हक तक पहुंच रही हैं? जमशेदपुर के पोटका प्रखंड में रहने वाले 17 वर्षीय विकलांग हचाई बास्के की कहानी एक उदाहरण पेश करती है कि कैसे सरकारी योजनाएं लाभुकों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
डोमजुड़ी पंचायत के राजदोहा गांव के बाड़ेघुट्टू टोला निवासी हचाई बास्के पिछले पांच वर्षों से अपनी विकलांगता पेंशन के लिए बैंक के चक्कर काट रहे हैं। हचाई पूरी तरह से चलने में असमर्थ हैं और पेंशन की राशि प्राप्त करने के लिए बैंक ऑफ इंडिया की मेचुआ शाखा के चक्कर लगा रहे हैं। हालांकि, उन्हें अब तक अपनी पेंशन का भुगतान नहीं मिल पाया है। हचाई की मां, धानी बास्के, ने बताया कि पहले उनके बेटे को कोरोना से पहले पेंशन मिलती थी, लेकिन अचानक वह बंद हो गई। वह पोटका प्रखंड कार्यालय जाती हैं, लेकिन वहां से उन्हें यही बताया जाता है कि राशि बैंक ऑफ इंडिया की मेचुआ शाखा (जादूगोड़ा) के खाते में भेजी जा रही है। हालांकि, बैंक से उन्हें उल्टा जवाब मिलता है कि पैसे किस खाते में भेजे जा रहे हैं, इसका पता प्रखंड कार्यालय से करें। इस जटिल प्रक्रिया में फंसकर हचाई की मां और उनका परिवार परेशान हो गया है।
सरकारी योजनाओं की असलियत
हचाई बास्के ने दो बार केवाईसी भी जमा किया, फिर भी पेंशन की राशि प्राप्त नहीं हो रही। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार की योजनाएं उन लोगों तक पहुंच रही हैं, जिनके लिए ये बनाई गई हैं? कई बार अधिकारियों के बीच खींचतान और उपेक्षा से लोगों को सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है।